1)बहेलिया
------------------
बहेलियों का है जाल फैला,
बोल बड़े मीठे इनके,
नादां बुलबुल संभल जरा,
नज़रें जिस्म पर टिके होते ।
आंख गड़ाए बैठे हैं ,
अभी नोच खा जाऐगें,
घात लगाए बैठे हैं
जरा सा मौका जो मिल जाए।
अनगिनत भक्त ऊंचा रसूख,
नेता अभिनेता सब जाते,
विशाल मठ ऊंची पहुंच,
अपने कुकर्मों को भुनाते।
दान देते चढ़ावा चढ़ाते,
काला धन खूब लुटाते,
पैसों की कश्ती पर सवार,
पापों की भवतरणी पार कर जाते।
ना डर ना भय समाज से,
सब इनकी कठपुतली हाथ के,
ओम ओंकार के उच्चारण से,
हर भव बाधा पार पा जाते ।
नशे में तरबतर रहते,
हर जख्म की दवा रखते,
पर, घाव जो दे जाते,
सुन रोंगटे खड़े हो जाते।
टीका त्रिपुर माथे लगाए,
वासना की नदी बहाते,
खुद डुबते, समाज डुबोते,
ऋषि परम्परा दूषित कर जाते।
---------------------
2) किसान
संयम के पराक्रमी पर्वत,
सम्यक साधना के प्रणेता
खेतों में सींझते अनवरत,
किसान हमारे अन्नदाता ।
खेतों से जुड़ी इनकी संवेदना,
खून पसीना ये बहाए,
संसद में बैठी हुक़ूमत,
मेहनत का कीमत लगाए ।
खेतों से सोना उगाते,
फटेहाल जीवन खुद बीताते,
माटी में रमे सने,
खेतों से आत्मीयता बनाते ।
हाड़तोड़ मेहनत करते किसान,
भण्डार भरते रहते हुक्मरान,
राजनीति ओर बिचौलियों बीच,
पिसते रहते होते परेशान।
धूप में जलते रहते हैं,
पानी में गलते रहते हैं,
इन्ही मेहनतकश हाथों का,
सब भरपेट भोजन करते हैं।
पा इनके हाथों का स्पर्श
प्रफुल्लित हो उठती धरा,
प्रस्फुटित,अंकुरित उमगती,
उपकृत जीवन सदा पृथा।
---------------------
3) वीरों को नमन
भारतवर्ष के उन्नत भाल पर,
जो वीर रक्त- तिलक लगा गये,
शीश फूल का बना मेरू,
इसके गले पहना गये ।
उन वीरों को नमन है,
गुणगान उनका वंदन है।
जिस देश की माटी का,
कण कण गौरवशाली हो,
जहां शील-धर्म रक्षिता
पद्ममिनी महाबलशाली हो।
जहां शीश धड़ से अलग होने
पर भी, दुश्मनों को चीरतें वीर,
जहां अस्सी की उमर में,
रकीबों को ललकारते रणवीर।
जहां की सती सावित्री,
यमदूतों से भिड़ जाती हो,
जहां तलवार की एक ही वार से
गर्दन दुश्मन की कट जाती हों।
जिस पावन भारतभूमि के,
प्रहरी हो पर्वत हिमराज,
जिसके शुभ्र चरणों को,
चूमता पखारता सागर समाज।
जहां चन्द्गगुप्त अशोक जैसे,
वीर मानी अभिमानी हुए,
जहां महाराणा जैसे पुत्र,
सूर्य के सम स्वाभिमानी हुए ।
जहां के अबोध बालक भी,
नचिकेता ध्रुव प्रहलाद हुए,
उस गौरवमयी भारत भूमि ,
स्तवन सकल संसार किये।
सुषमा सिंह
------------------
(स्वरचित एवं मौलिक )