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प्रेम शंकर प्रेमी।दारूण दुख क्यों सहती रहती_premi

💐( गाना )💐

( तर्ज---जब रात रही बाकी कुछउ 
  छूप जाई अंजोरिया आ जईहा )

 💐दारूण दुख क्यों सहती रहती💐

शक्ति का हो  अवतार यहाँ
दारूण दुख क्यों सहती रहती
 बिच्छू डंक हजारों पा तन पर
भावना में मगर बहती  रहती

माया हो तुम्ही छाया तुम हो 
सौंदर्य रूपी  काया तुम हो 
तुमसे ही निर्मित जड़ चेतन
निज प्रीतम का साया तुम हो 
जननी रूप में भी तुम नारी
 पालन सबका करती रहती 
शक्ति का हो अवतार यहाँ
दारूण --------------------।।2।।

माता हो तुम्ही पत्नी भी तुम्ही
बेटी  हो  गृहलक्ष्मी भी तुम्ही 
कंठों का मधूर स्वर भी तुम हो
हर गीत हो तुम  संगीत तुम्ही 
तुम ही गुलशन का पुष्प बनी
भौंरों को मोहित करती रहती 
 शक्ति का हो अवतार यहाँ 
 दारूण दुख-----------।।3।।

अब इस धरती पर कोमलांगी
हरपल ही मसली जाती हो 
तुम ही काली चण्डी हो मगर
नहीं रूप कोई दिखलाती है 
सहती हो अत्याचार बहुत
लगी आग में तु जलती रहती 
 शक्ति का हो अवतार मगर
दारूण दुख----------।।4।।

माता के गर्भ मे तुम अक्सर
अबला क्यों मिटाई जाती हो 
कहीं झाड़ झखाड़ गट्टर मे भी
जन्मी तो लिटाई जाती हो  
जीवन की अनिश्चित धारा मे
नारी तु सदा बहती रहती 
शक्ति का हो अवतार मगर
दारूण दुख ----------।।5।।

जो जिश्म तेरा छलनी करता
चेतना भी वो घायल करता है
वह हाथ नहीं गलता उसका
जिस हाथ तेरा चीर हरता है
हथियार उठा संहार करो
हैवान रहित तु करो धरती 
शक्ति का हो अवतार मगर
 दारूण दुख ----------।।6।।

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(मुझे अफशोस है कि मेरा गला नहीं है जिसके कारण अपने द्वारा रचित गाने, गीत, भजन और कविताओं को गा नहीं पाता । लेकिन तर्ज पर लिख लेता हूँ ।)
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कवि--- प्रेम शंकर प्रेमी ( रियासत पवई   )

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