हिंसा क्यों बढ़ रही
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देव भूमि यह पुनीता,
आज क्यों जल रही,
सहिष्णुता अहिंसा गौण,
हिंसा क्यों बढ़ रही ।
ऋषियों कृषकों का देश,
क्यों आज उबलने लगा,
अन्नदाताओं के खेतों में,
नफरत कैसे फलने लगा।
आग लगी है भगत सिंह,
आज तेरे पंजाब में,
अन्न की जगह असंतोष,
उग रहे तेरे बाग में ।
जिन प्राचीरों पर सदा,
लहराता रहता था तिरंगा,
आज उसी के प्रांगन में,
हो रहा हिंसा का नाच नंगा ।
मुठ्ठी भर सिरफिरों की,
यह करतूत कारस्तानी,
बदनाम कर रहे मही को,
कुछ धूर्त, नांदा खुराफानी ।
छब्बीस ज० का दिन पावन,
अपने ही लगा गये आग,
कराह रहे स्वर्ग में गांधी,
हाय यह कैसा संताप ।
गैरों से क्या शिकवा करू,
अपनों से बदनाम हुआ,
यह वहशीपन आया कैसे,
लग गयी किसकी बद्ददुआ ।
सुषमा सिंह
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(स्वरचित एवं मौलिक)
बहुत अच्छे।