कविता
वे मुझसे जलते हैं
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जाने क्यों वे मुझसे जलते हैं,
जाने क्यों उनके दिल में नफरत पलते हैं,
रहते जब जब वे सत्ता से दूर,
आन्दोलन के लिए निकल पड़ते हैं।
झलकती सत्ता पाने की बेचैनी उनमें,
वेवजह वे गलत बयानी करते हैं,
भरते वे जनता में नफरत के बीज,
बिन मतलब के जहर उगलते हैं।
बरगलाते उकसाते जनता को वे,
अपना उल्लू सीधा करते हैं,
कहलाते वे खानदानी जन प्रतिनिधि,
पर वे जनता से उलझा करते हैं।
बड़बोलापन में जग जाहिर हैं वे,
जनता को लड़ाने में माहिर हैं वे,
करते हैं वे अक्सर देश को शर्मसार
देश विदेश वे घुमा करते हैं।
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अरविन्द अकेला