कविता
(हरत गरीब का पीर )
अपराधों से दूर जो
उन्हें फंसाते लोग ।
दामन जिसके दाग हैं
उन्हें बचाते लोग ।।
शोहरत मिलती है उसे
दौलत जिसके द्वार ।
दूर भागते लोग हैं
जो जन गरीब लाचार ।।
घर में दबती चीख है
बेवश जो लाचार ।
बड़ों के घर में होत जो
छप जाते अखबार ।।
जहाँ रखते चाह वे
कभी न पाते राह ।
देख दशा गरीब की
निकले दिल से आह ।।
सभी सहायक होत हैं
जिनमें हो सामर्थ्य ।
उन्हें नहीं कोई पुछता
जो बेवश असमर्थ ।।
भेद झूठ और सत्य में
कर नहीं पाते लोग ।
देते उसी का साथ जो
निज स्वार्थ के योग्य ।।
समय पात्र को भाँप जो
लोग बदलते रूप
बोलन की बारी जहाँ
रह जाते वो चुप
प्रेम प्रतिष्ठा में तजत
जो गरीब निज प्राण ।
उसमें बचता बड़ेन का
आन बाण और शान ।।
देख दशा संसार का
नैन से बहते नीर ।
प्रेमशंकर वस होत तो
हरत गरीब का पीर ।।
कवि-- प्रेम शंकर प्रेमी ( रियासत पवई )