कविता
सबको एक दिन मरना है
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सबको एक दिन मरना है,
मौत से फिर क्यों डरना है,
करते रहना है काम अपनी धुन में,
पल पल आगे बढ़ना है।
सबको एकदिन मरना है।
यह जीवन दो चार दिन की,
यहाँ नहीं किसी से झगड़ना है,
सारे लोग हैं इस जहाँ में अपने,
उन सबसे प्यार करना है।
सबको एकदिन मरना है।
मौत आनी है आयेगी एक दिन,
डर के नहीं जीना मरना है,
हम तो अपने धुन के मुसाफिर,
निरंतर चलते रहना है।
सबको एकदिन मरना है।
हमें डर नहीं किसी काल से,
हमें महाकाल के शरण में रहना है,
अपने कर्म करते रहो तुम बन्दे,
कवि 'अकेला' का यह कहना है।
सबको एकदिन मरना है।
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अरविन्द अकेला