गुमराह
गुमराह है वो सफर,
जो चलता असत्य के मार्ग पर।
नहीं जानता परिणाम के बारे में,
अडिग रहता अपनी बात पर।
जीवन है क्षणभंगुर,
यूँ ही चलते जाना हैं।
कैसे भूल गया मानव ?
कुछ भी साथ नहीं जाना है।
कुछ हो जाते गुमराह,
जो देते दुख औरो को भी।
सही मार्ग होता सामने,
पर वह देख पाते नहीं कभी।
गुम हैं अच्छाईयाँ ,
और बढ़ती बैचेनियाँ,
सत्य हारता प्रतिदिन,
मौज मारती तन्हाईयाँ।
गुमराही अगर है जग तो,
तुम ना गुमराह बनो।
संभल जाओ मानव अब तो,
यूँ ना अपना घर बरबाद करो।
आज की पीढ़ी हो रही गुमराह,
नहीं समझती कुछ भी नादान।
जब हो जायेगा भविष्य खराब,
चारो ओर फैल जायेगा अंधकार।
शाहाना परवीन...✍️
पटियाला पंजाब