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सुषमा सिंह की दो रचनाओं का अवलोकन करें ।अशोक और कुर्सी।पढ़कर अपना विचार अवश्य दें_kunjsahity

 सम्राट अशोक
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   अतीत  खंगालना  और  भविष्य  पर       दृष्टि   गड़ाए  रखना  मनुष्य  का  स्वभाव
है। कौतूहल  और  जिज्ञासा  हो  तो  कुछ
असंभव  भी नहीं है। अपने  इन्हीं  गुणों  के  बदौलत इन्सान  वर्तमान में जीते  हुए
भी  अतीत  को नकार नहीं सका, और 
भविष्य  जानने  की कोशिश  भी  करता
रहा। यह  धरती  हजारों  वर्षों  से  यूं ही
अडिग  अविचल  खड़ी  है,और  न जाने
कब तक  अस्तित्व में  रहेगी  कहा  नहीं
 जा  सकता । आज  जिस  धरती  से हमारी  पहचान है, प्राचीनकाल  में  इसे
मगध  के नाम  जाना जाता  था।  वही
भूखण्ड  आज  बिहार  के  रुप  में   प्रतिष्ठित  है । मगध  का  अपना  एक 
इतिहास  रहा है । सर्वप्रथम  हर्यक वंश,
शिशुनाग वंश,  नंदवंश  तत्पश्चात  मौर्य
वंश ।
            मौर्य वंश  की  नींव  चन्द्रगुप्त मौर्य  ने  रखी,  जिनके  सहायक विश्व
प्रसिद्ध  विद्वान  आचार्य  चाणक्य थे ।
इसी  मौर्य वंश  में  आगे  चलकर   एक
महाप्रतापी  राजा चक्रवर्ती  सम्राट  अशोक  हुए । अशोक  की  गणना  विश्व
 के  महानतम  शासकों  में  की  जाती 
है अशोक  का  जन्म  304ईसा  पूर्व में
इसी  पाटलिपुत्र  में  हुआ  था। अशोक
जिसके  शासनकाल  में मगध  अपने
चरमोत्कर्ष  पर था। प्रारम्भ  में अशोक
इतना क्रूर  था  कि उसे  चण्डाशोक के
नाम  से जाना जाता  था  ऐसी  किवन्दती
है कि  अपने  निन्यानवे  सौतेले   भाईयों
की  हत्या  कर  अशोक  अपनी गद्दी  सुरक्षित  कर  लिया  था । वैसे भी सता
और क्रूरता  का  अपना  एक  अलग  इतिहास  रहा  है। 

                 अशोक  मौर्य  साम्राज्य  का
सर्वाधिक  प्रसिद्ध  और  शक्तिशाली  राजा
था  जिसकी  राजधानी  पाटलिपुत्र   वर्तमान  में  पटना  थी । अशोक का साम्राज्य  उत्तर पश्चिम में अफगानिस्तान,
पश्चिम  में काठियावाड़  से  लेकर  पूर्व
में  उड़ीसा, और  दक्षिण  में कर्नाटक  तक
विस्तृत  था ।इसे  भारतीय  उपमहाद्वीप
का सबसे  बड़े साम्राज्य  के  रूप में  माना
जाता है । जिसका  सबूत उसके  शिलालेखों में  मिलता है। अपने साम्राज्य
विस्तार  के लिए अशोक  ने अनेको लड़ाईयां  लडी, पर  इनमें  सर्वाधिक
महत्त्वपूर्ण  युद्ध कलिंग  के साथ  हुआ।
जिसमें  हुए  घोर रक्तपात को  देख  अशोक  का  हृदय  द्रवित  हो  उठा, और
उसने  शस्त्र ना  उठाने  की  कसम  खाई।
ऐसा  अनुमान है कि इस युद्ध  में  एक लाख के  करीब  सैनिक  खेत  रहे, हजारों
बेघर  हो गए, यहीं  से  उसका  हृदय परिवर्तन  हुआ । इसके  बाद  अशोक
बौद्ध धर्म की  शरण  में चला  गया । उसने
शस्त्र बल पर  नहीं, बल्कि धर्म बल के 
बदौलत लोगों  का  दिल जीतने  का निश्चय  किया । अपने  बेटे महेंद्र  और
बेटी  संघमित्रा  को  बौद्ध धर्म  के प्रचार
हेतु  श्रीलंका  तक  भेजा । प्रजाहित  में
अनेकानेक  महत्त्वपूर्ण  कार्य  किए ।
आवागमन  का  मार्ग  सुदृढ़ किया । आज
जिस  ग्रेंट ट्र्कं रोड  को हम देखते  हैं इसको पहले पहल अशोक ने  ही बनवाया
था,उस समय  जिसका नाम  उतरापथ  था।  "अशोक चक्र " जैसा  कि नाम से ही
विदित  है और  जिसे  धर्म चक्र भी कहा
जाता है, आज भी  तिरंगें  में  मौजूद  है,
जो कि  अशोक महान  की  महान  देन
है । अशोक स्तंभ  भी  भारत  का  राजकीय  प्रतीक  चिन्ह  है ,जो  कि सारनाथ  में अवस्थित  है ।  अशोक  एक मानवतावादी  सम्राट  था ,जो कि रात दिन
जनता की भलाई कार्य  में  लगा  रहता 
था।  उसने  धर्म  पर  बहुतेरे  कार्य  किए
बौद्ध धर्म  के प्रचार प्रसार में  अशोक  की 
महती  भूमिका  रही ।
                अतः  स्पष्ट  है कि  अशोक 
महान  विजेता, महान धर्म  संरक्षक के 
रुप  में ‌ विख्यात है,  जिसके  राज  में
प्रजाजन  सुख शांति से खुशहाल  जीवन
व्यतीत  करती  रही।  इतिहास  पर  इतना
व्यापक  प्रभाव  किसी  अन्य  राजा  का 
नहीं  पड़ा ।
                      सुषमा सिंह
                       औरंगाबाद
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 कुर्सी
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   कुर्सी  के  साथ  छुपा  होता  है भय,
   कुर्सी और सता प्रपंचों का खुला खेल 

   हर्यक    हो    या   मुगल,
   कुर्सियों    के  हाथ  सदा,
   खून   सने   होते  अक्सर।

   अजातशत्रु  ने उठाया खड्ग,
   किया अपने  पिता का कत्ल,
   फिर  पाया  राजा  का   पद।

   गुरु  पिता  को किया  जिबाह,
   कहलाता  द  ग्रेट   अकबर,
   गुरु माता संग किया निकाह।

   शाहशुजा,    दारा शिकोह,
   छोड़  चुके  थे   कुर्सी  मोह,
   संकट समझ मारे गए बेवजह।

   महाराणा की उज्ज्वल गाथा पर,
   दाग   लगाये   शक्ति   जगमाल,
   कुर्सी हेतु दुश्मन से मिलाए  हाथ।

   कमोवेश आज भी स्थिति है वही,
   नैतिकता   का    ढोल, 
   कुर्सी  की क्रुर   नियति ।
                      सुषमा सिंह
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      ( स्वरचित एवं मौलिक)

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1 Comments
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Unknown said…
अच्छी रचना/हार्दिक बधाई--आचार्य सूर्य प्रसाद शर्मा निशिहर-रायबरेली