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बिस्तर गीला करमै रोता था जब भी ।उठाकर वदन परलीटाती थी मुझको_sahityakunj

कवि --प्रेमशंकर प्रेमी (रियासत पवई )

कविता

               मेरी माँ

कैसे भुला दूँ 
वो बचपन की यादें ।
जैसे मेरी माता
सुलाती थी मुझको ।।

बिस्तर गीला कर
मै रोता था जब भी ।
उठाकर वदन पर
लीटाती थी मुझको ।।

जब मैं चिल्लाता
न सोता था जल्दी ।
वो बाँहों में अपनी
झुलाती थी मुझको ।।

मुझे थपथपाकर
वो लोरी सुनाती ।
खिलौने दिलाकर
खेलाती थी मुझको ।।

कभी घोड़ी बनकर
सवारी  बनाती ।
वो आँगन में अक्सर
घुमाती थी मुझको ।।

अगर कोई अन्जान
आता था घर में ।
खुद आँचल में अपने
छुपाती माँ मुझको ।।

मैं जब भी झल्लाता
वो परेशान होती ।
माँ सारे कष्टों से
बचाती थी मुझको ।।

लेकर गोद मुझको
बड़े प्यार से माँ ।
चंदा को दिखाकर
खिलाती थी मुझको ।।

जब भी मैं रूठता
मुझे वो मनाती ।
बाँहों को फैलाकर
बुलाती थी मुझको ।।

सपनो में अक्सर 
माँ आती है मेरी ।
बिहसकर हमेशा
जगाती है मुझको ।।

कवि --प्रेमशंकर प्रेमी (रियासत पवई )
कवि --प्रेमशंकर प्रेमी (रियासत पवई )

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