शिव जगत के पालनहार
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गंग चन्द्र सोहे माथ,
कण्ठ भुजंग की माल,
पार्श्व गौरी बैठी साथ,
शिव जगत के पालनहार।
त्रिनेत्र त्रिलोकी भोले नाथ,
अंगे बाघम्बर की छाल,
भांग धतूरा जेवनहार,
एकान्त साधना पर्वत कैलाश।
कर त्रिशूल किए धार,
ओम ओंकार का उच्चार,
कण कण बसे त्रिलोकीनाथ,
हलाहल पान नीलकंठ बैजनाथ।
राम रावण दोऊ पूजे,
दोऊ पाए स्नेह प्रसाद,
चले गौरा ब्याहन शिव,
भूत पिशाच संग बारात ।
देखत मैना मूर्छित भयी,
गौरा मोरी अति सुकुमार,
औघड़दानी से ना ब्याहूं,
रहिहें मोरी धीया कुंआर।
सुषमा सिंह
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(सर्वाधिकार सुरक्षित एवं मौलिक)