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जैसे बीता है कल आज भी बीत जाएगा, धीरे धीरे यह वक्त भी गुजर जायेगा_sahitya kunj sushma singh

कोरोना का कहर
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  चारों  दिशाओं में भय का है आलम,
  कोरोना  ने  ऐसा  मचाया  कोहराम।

  सांसें   सबकी   अटकी   पड़ी   है,
  क्या जाने  कैसी  हवा  ऐ चली  है।

  बुझा  बुझा  मन डरा  डरा  जीवन,
  कोरोना का कहर बढ़ा रहा उलझन

  संक्रमण से ना कोई बच पा रहा है,
  हवाओं में फैला जहर त्रस्त लोग बाग है।

   फख्र करता है मनुज अपने आप पर,
   रौंद डाला  सब  नदी  पहाड़  जंगल।

   अब भी समय है मानुष जाग जाओ,
   विकास की आड़ ले ना विनाश बढ़ाओ।

   इक  पल  ठहरो  गौर  करो  जरा कटे,
   कितने नीम पीपल श्रीहीन हुईं कैसे  वसुंधरा।

   जीवक चरक सुश्रुत का यह भारत देश,
  एक एक फूल पत्तियों को पढ़ बने महावैद्म।

   जरा चेत जाएं हम तो सब बदल जाएगा 
   आत्ममूल्यांकन करे तो खौफ कोरोना मिट जाएगा।

   आओ  लौट चलें फिर गांवों की‌ ओर,
   थोड़े प्रकृतिस्थ  हों तो शान्ति चहुंओर।

   विरोधी मैं भी नहीं विज्ञान व विकास की
   पर संतुलन जरुरी हैलोक और समाज  की ।

   पल पल इम्तहान है संकट में जहान है,
  थोड़ी सावधानी रखो ना होना परेशान हैं।

  जैसे बीता है कल आज भी बीत जाएगा,
  धीरे धीरे  यह वक्त  भी गुजर जायेगा।

                      सुषमा सिंह
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( सर्वाधिकार सुरक्षित एवं मौलिक)

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