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मानते नारी को तुच्छ सदा, विकलांग पौरुषता का भरते दंभ, धृणित मनोवृत्ति वाले सदा, आंकते हैं नारियों को कम_sahitykunj

नारी तुम नारायणी
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    सुन्दरता   वरदान   प्रिये,
    सुन्दरता   है   अभिशाप,
    सुन्दरता      के    कारण,
  ‌‌  हुआ   तेरा   यह    हाल।

    कामुकता दुष्चरित्रों का रोग,
    इसमें भला  तेरा  क्या  दोष,
    तुम       नारी      नारायणी,
    बेवजह  झेलती  रही  क्रोध।

    जमाने ने देखें तेरे रुप अनेक,
    नहीं   मात्र    हो   तुम    देह,
    वासनाओं के विवर से झांकते सपोले
    मदान्ध  हो  जातें हैं तुम्हें  देख ।

    याद  आती  है अहिल्या  माता,
    इन्द्र   धृष्टता   की  वह   गाथा,
    कुपित   हुए   थे   तब   गौतम,
    ना हुआ था छलिया का बालबांका।

    जनकनंदिनी    जानकी   माता,
    जिनके तृण से रावण था कांपता,
    मिशाल  बनीं  जिसकी पवित्रता,
    ताउम्र  देती  रही  अग्निपरीक्षा।

    मां    भारती   के   गाल   पर,
    एक    झन्नाटादार   थप्पड़  है,
    जहां  पूजी  जाती  थी नारियां,
    वहां   हर  रोज  बलात्कार  है।

    मानते  नारी को  तुच्छ  सदा,
    विकलांग पौरुषता का भरते दंभ,
    धृणित  मनोवृत्ति  वाले  सदा,
    आंकते  हैं  नारियों  को  कम।

                सुषमा सिंह
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(स्वरचित एवं मौलिक)

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2 Comments
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ARVIND AKELA said…
वाह,बहुत अच्छे।
Sushma Singh said…
धन्यवाद भाई साब आपको यह रचना अच्छी लगी 🙏