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सन्नाटे चीरती चीखे, हुआ निशाचरो का राज़ है।। चील, कौओं से बदतर मनुज, गुम सत्य के अल्फाज़ ‌ हैं_sushma singh

चांद  उदास  है
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   क्यों  चांद  आज  उदास  है,
   हुई   क्या    ऐसी   बात   है।
   बुझे  बुझे  क्यों   हैं  सितारे,
   क्यों आसमां का रंग स्याह है।।

   तल्खी बढ़ी  हवाओं में  कैसे,
   क्यों  हरेक   जन  हताश  है।
   गुलों     में     खूशबू     नहीं,
   कौन गुलशन का खैरख्वाह है।।

   इशारों इशारों में सब बतियाते,
   मुंह    खोलना  अब  पाप   है।
   शब  के  सन्नाटे चीरती  चीखे,
   हुआ  निशाचरो  का राज़   है।।

   चील, कौओं  से बदतर  मनुज,
   गुम  सत्य   के   अल्फाज़ ‌  हैं।
   ईमानदारी सिसक रही कोने में,
   बेईमानो  का  गर्म  बाजार ‌ है।।

   बेटियों   मत   निकलो   बाहर,
   तेरा  सौन्दर्य ही अभिशाप  है।
   गूंज  रहे   महलों   में   ठहाके,
   गरीब  सड़कों  पर  लाचार  है।।

                       सुषमा सिंह
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( सर्वाधिकार सुरक्षित एवं मौलिक)

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8 Comments
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जी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (१७-०४-२०२१) को 'ज़िंदगी के मायने और है'(चर्चा अंक- ३९४०) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
वाह... बहुत खूब 👌
बहुत सुंदर रचना
Sushma Singh said…
धन्यवाद सैनी मैम🙏
Sushma Singh said…
आभार आपका किरण मैम
Sushma Singh said…
This comment has been removed by the author.
Sushma Singh said…
बहुत बहुत आभार अनुराधा मैम🙏
यथार्थ पर तीखा प्रहार करती सार्थक रचना।