चांद उदास है
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क्यों चांद आज उदास है,
हुई क्या ऐसी बात है।
बुझे बुझे क्यों हैं सितारे,
क्यों आसमां का रंग स्याह है।।
तल्खी बढ़ी हवाओं में कैसे,
क्यों हरेक जन हताश है।
गुलों में खूशबू नहीं,
कौन गुलशन का खैरख्वाह है।।
इशारों इशारों में सब बतियाते,
मुंह खोलना अब पाप है।
शब के सन्नाटे चीरती चीखे,
हुआ निशाचरो का राज़ है।।
चील, कौओं से बदतर मनुज,
गुम सत्य के अल्फाज़ हैं।
ईमानदारी सिसक रही कोने में,
बेईमानो का गर्म बाजार है।।
बेटियों मत निकलो बाहर,
तेरा सौन्दर्य ही अभिशाप है।
गूंज रहे महलों में ठहाके,
गरीब सड़कों पर लाचार है।।
सुषमा सिंह
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( सर्वाधिकार सुरक्षित एवं मौलिक)
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (१७-०४-२०२१) को 'ज़िंदगी के मायने और है'(चर्चा अंक- ३९४०) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।