1 मां
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थक गयी है चूक गयी है,
मेरी मां थोड़ी झूक गयी है।
झुर्रियों से भरा चेहरा
निपट अकेला दीखता है।
खुरदरी हथेलियां चांदी से बाल
अनुभवों का पिटारा लगता है।
मां को है मुझसे शिकायत,
उसको मैं भूल गयी,
आकर के ससुराल में
पति बच्चों में डूब गई।
मां कैसे बताऊं मै,
क्या बीतता है कैसे सुनाऊं मैं,
लहुलुहान हुए इस मन को,
कैसे छाती फाड दिखलाऊं मैं।
आंचल की वह सोंधी महक,
भला कैसे भूल पाऊंगी,
सच कहती हूं मां मैं,
अबके छुट्टियों में आऊंगी।
मां मैं ही नहीं बच्चे भी,
तुझे याद बहुत करते हैं,
कहते मम्मी छुट्टियों में,
हम नानी घर मजे करते थे।
सुषमा सिंह
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2 युवा आज के
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बाजारवाद के तेज बहाव से,
जीवन की अंतहीन लालसाओं से,
आधुनिकता के पागलपन से,
भ्रमित हो रहे हैं युवा आज के ।
चौतरफा मार भ्रष्टाचार का,
असहिष्णुता और अमानवीयता का,
बढ़ती जा रही हिंसक मानसिकता,
छीज है मानवीयता संसार से।
आगे बढ़ने की होड़ में,
भौतिकता की चाह बढ़ी है,
खेत खलिहानों की बातें बेमानी,
स्केलेटर पर चल रही जिन्दगी आज के।
गैजेट्स में समाया मन,
दुनियादारी से दूर हुए हम,
धनिये पुदीने की महक ना भाती,
रेस्टोरेंट में पिज्जा चटकारे युवा आज के,
फैशन में पेरिस हुआ पीछे,
नित नये कलेवर में वो दीखते,
यूट्यूब और फेसबुक में आंखें गड़ाए,
फटी जींस पहन इतराते युवा आज के।
सुषमा सिंह
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( स्वरचित एवं मौलिक)
बहुत सुन्दर।