राम लीला रास लीला
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राम लीला रास लीला,
दो लीलाओ से महकी मही पुनीता।
दो अवतार दो अराध्य,
दोनों की महिमा अपरम्पार ।।
रुप नितुल्य तेरी बनवारी,
शिश मुकुट अधर बांसुरी।
बाल्य साख्य दास्य माधुर्य
किस रुप में तुझको पूजूं अच्युत।।
अनुरागमयी अलौकिक तेरी लीला,
मथुरा, द्वारिका वृन्दावन सुभीता।
तुम फागरस तुम जीवनलीला,
दीवानी राधा गोपियां मीरा ।।
कुरूक्षेत्र में खडे कुटनीतिज्ञ महान,
सहृस्रमुख भी कम महिमा बखान।
कुरूक्षेत्र में दिया गीता ज्ञान,
शर साधो पार्थ लक्ष्य महान।।
विशद बखान तुलसी रामायण,
असुरों पर विजय का गान ।
वन वनान्तर में लेकर पनाह,
पितृवचन का रखा मान ।।
श्यामल रंग राजीव नयन,
इक्ष्वाकु कुल वंश नन्दन।
कोमल चित उज्जवल चरित,
कर्म बल पावन विमल पुनीत।।
त्याग तपस्या का व्रत महान,
माताओं के प्रिय दशरथ के प्राण।
मातृप्रेम के सर्वोच्च कीर्तिमान,
हर वर्ग में पूजित समान।।
पुरुषश्रेष्ठ सकल जगत कृपानिधान,
अतुल यश निर्मल चरणधाम।
चरण सेवक महाबली हनुमान,
रघुकुल पुंगव रधुकिरीट राम।।
सुषमा सिंह
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( सर्वाधिकार सुरक्षित एवं मौलिक)