गजल
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रदीफ- रही हूं
गमे दिल की दास्तां लिख रही हूं,
खुद से हुई हर खता लिख रही हूं।
हुश्न को करना बदनाम है उनका शगल,
मुझे जो मिली वो सजा लिख रही हूं ।
वादे कसमें और निभाई सारी रस्में,
फिर भी दिल टूटा कैसे दगा लिख रही हूं।
ना सोना ना चांदी ना शानो-शौकत भरी जिंदगी,
बस उल्फत ए तमन्ना दिल बेवफा लिख रहीं हूं।
इश्क़ की प्याली में मिला जो जहर वो,
पीया भी कैसे दर्द बयां कर रही हूं ।
सुषमा सिंह
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( सर्वाधिकार सुरक्षित एवं मौलिक)
हर खता लिख रही हूँ।