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आदित्य कुमार प्रजापति द्वारा स्वरचित रचना ,आलस्य से कर्म भला_sahitya kunj


    *आलस्य से कर्म भला*

 आलसी मानव सोचता रहता 
कर्म योगी कर्म को करता 
आलसी मानव देखकर घबराता
 कर्म योगी सफलता को पाता!!1!!

 मानव जो कर्म करते हैं 
कभी ना असफल होते हैं 
मानव जो इससे घबराते हैं
 आलस्य को गले लगाते हैं!! 2!!

जीवन जब तक चलता है 
मानव कर्म को करता है 
आलसी मानव कर ना पाए 
जीवन में असफल हो जाए!!3!!

 आलस्य को जिसने पाला है
 जीवन उसका दुखों वाला है 
कर्म को जिसने संवारा है 
जीवन उसका सुखो वाला है!!4!!

 आलस्य जो मानव करता है
 उसका कर्म डोल जाता है 
मानव जो लक्ष्य की ओर बढ़ता है
 अपना जीवन बुलंदियों पर पाता है !!5!!

सूर्य कभी ना आलस्य करता 
ना चंद्रमा से हो पाता 
जो नदियां सदा बहती
 उसमें कभी ना गंदगी होती !!6!!

हम आपसे कहते हैं 
मानव  जो आलस्य करते हैं 
उम्र उसका कम हो जाता है 
कभी न सुखी रह पाता है !!7!!


आदित्य आप कहता है 
मानव जो कर्म करता है
 उम्र उसका दुना होता है 
कभी ना दुखी रहता है !!8!!

आलस त्यागने कहता हूं 
कर्म अपनाने कहता हूं 
अंधकार से दूर रहता हूं 
प्रकाश से नाता रखता हूं !!9!!

जब से आलस्य को दूर भगाया हूं
 जीवन को बुलंदियों पर पाया हूं
 अच्छे कर्मों को अपनाया हूं
 जीवन में सफलता पाया हूँ!!10!!

आदित्य कुमार प्रजापति

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