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पुलिस ने जब डंडे बरसाए,कूद-काद कर प्राण बचाया।दुःख की इस घड़ी में फिर से ,हँसने का मौसम आया_sahitykunj

।। कविता ।।
हँसने का मौसम आया
------श्रीराम रॉय ,शिक्षक
आईने में चेहरा खूब  सजाया
मुख पर पशु का जाब चढ़ाया।
*दुःख की इस घड़ी में फिर से*
*हँसने का मौसम आया।।

दुनिया लाख समझा रही
लेकिन हम समझे  नही
अपनी जिद्द पर अड़े रहे
अब खुद पर जी भर हंसे।
न मास्क लगाया
न दूरी निभाया
लॉकडौन को ठेंगा दिखाया
घंटो शहर में मौज उड़ाया
पकड़े गए जब बीच चौराहे
पुलिस ने जब डंडे बरसाए
कूद-काद कर प्राण बचाया।
*दुःख की इस घड़ी में फिर से*
*हँसने का मौसम आया।।*

झुला गले मे मास्क का फंदा
चले सजन करने को धंधा
कोरोना के इस महा समर में
कभी टिका न अपने  घर में
साथ मे चार चार यार बिठाया
लहरियाकट बुलेट उड़ाया।।
*दुःख की इस घड़ी में फिर से*
*हँसने का मौसम आया।।*

और अचानक होने लगी खंशी
छाने लगी घर बाहर उदासी
यारों ने भी छोड़ा मिलना
अकेले घर मे घुट घुट रहना
धीरे धीरे आने लगी बुखार
अब जरूरी आया उपचार
चौदह दिन घर वैद फरमाया
जांच कोरोना पोसिटिव आया
*दुःख की इस घड़ी में फिर से*
*हँसने का मौसम आया।।*

धरती को कर कंगाल
लगे समझने खुद भौकाल
फैक्ट्रियों के जाल बिछाने
काटे जंगल पेड़ सुहाने
 भाग दौड़ में छाँछ को भूल
गली गली खुले मयखाने
नीम पीपल छाँव को काट
घर घर कूलर ऐसी सजाया
सिलिंडर उठा ऑक्सिजन लाने
 फैक्टरी फैक्टरी दौड़ लगाया
दुःख की इस घड़ी में फिर से
*हँसने का मौसम आया।।*
--श्रीराम रॉय,शिक्षक,झारखंड सरकार, www.palolife.com

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3 Comments
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Sushma Singh said…
व्यंग्यात्मकता अलग आस्वाद देती है
बहुत सुंदर बधाई
Unknown said…
सचमुच इस दुख की घड़ी में चेहरे पर मुस्कान आ गई🙏