मेरी दो रचनायें
------सुषमा सिंह,औरंगाबाद
गजल
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लगी किसकी नजर मुरझा गये मुहब्बत ए शजर,
बियाबान में पुकारती रही कूसूर था मेरा।
काश पढ़ लेती मै मन तेरा पहले,
फिर सदाएं देती कैसा जूनून था मेरा।
बनने से पहले बिखर गया जो आशियां,
खुद को समझाया बहुत दुष्ट हुआ मन मेरा
कभी ख्यालों में ना आओ तुम मेरे,
जतन कुछ ऐसा कर रहा मन मेरा।
तेरी यादों के सैलाब में डूबती उतराती,
भंवर बीच मुस्कुराती साहिल तलाशता मन मेरा।
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2
मन के बाड
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स्वार्थ लालसा मन के बाड,
जिसने तोड़ा पाया विस्तार।
जीवन पथ दुर्गम प्रतिकूल,
धर्य धार से होते अनूकूल।।
मन बुद्धि अन्तःकरण शुद्ध,
दृढ़ संकल्प शक्ति से युक्त।
पग निरन्तर हो अग्रसर,
चित पावन शान्ति भरपूर।।
बंदे , क्या तेरा क्या मेरा,
चार दिनों का यह डेरा।
तुम पथिक ना हो भ्रमित,
आज यहां कल वहां सवेरा।।
धर्म से हुआ नुकसान बड़ा,
हिन्दू, सिख ईसाई सब मरा।
मन शुद्ध कर देख जरा,
मानवता से बड़ा धर्म है क्या।।
धर्म का झंड़ा गाड़ने वाले,
हृदय भाव ना पहचानने वाले।
नारे छोड़ प्रभु चरण गहो,
ईशभक्ति में भेदभाव न करो।।
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