चाय
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हाथों में लेकर प्याली,
हुई सुबह भान कराती,
मीठी-मीठी चुस्कियों बीच
दिन भर की प्लानिंग !
गरम पानी रखा है,
कपड़े भी तैयार हैं,
दफ्तर से जल्दी आना,
चलना हमें भी बाजार है।
खाली कर प्याली पकडाता,
चादर खींच सो जाता हूं,
दूसरी कप पिला दे प्रिय,
झटपट उठ जाता हूं।
हरकत हमारी देखकर,
वो हौले से मुस्कुराती है,
यह पुरानी आदत तुम्हारी,
कहां छूटने वाली है।
आलस हमें भी आती है,
हमें भी नींद सताती है,
सबको देते देते चाय,
खुद की ठंडी हो जाती है।
बड़बड़ाते हुए वो,
कमरे से निकल जाती है,
टूटती है मेरी खुमारी,
मुस्कुराती दूरी प्याली पकड़ाती है।
सुषमा सिंह
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(स्वरचित एवं मौलिक)
बहुत खुब।