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कविता। अंग अंग भींग जाने दो_akela

कविता 
अंग अंग भींग जाने दो
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थोड़ा हम भींगें,थोड़े तुम,
आज की इस बरसात में,
अंग अंग भींग जाने दो,
आज की इस मुलाकात में।

जब भींगेगा यह तन बदन,
लगेगी दिल में कुछ लगन,
लगेगी मन में एक आग,
आज की इस हसीन रात में।

दिल में रहें हैं मेरे अरमान,
भींगे संग संग तेरे बरसात में,
कहीं बीत न जाये यह जीवन,
सिर्फ बातों हीं बात में।

दिल की हसरतें करें पुरी,
इस रिमझिम बरसात में,
आओ करें थोड़ी हंसी ठिठोली,
मिलकर साथ साथ में।
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         अरविन्द अकेला

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