दोहा
*दुल्हन ही दहेज*
दुल्हन लाया दान में , लक्ष्मी लेत सहेज।
पैसों से मत तौलिए,दुल्हन बड़ा दहेज।।01
दानव दहेज ले रहा,ऐसा बना समाज।
बहुएँ भी आती भली,रखती नाहीं लाज।।02
तिलक लिलक कर ले रहे,करते बहुत गुमान।
सुन्दर बहुएँ चाहिए,मिलत नहीं सम्मान।।03
घर में ईज्जत देत है,बाहर भीतर मान।
कन्या दान दहेज है,मत कीजै अपमान।।04
बेटे से यदि प्यार है, लेना नहीं दहेज।
सोच समझ कर बोलिए,बहुओं से परहेज।।05
नारी - नारी ऐंठती,लाई नहीं दहेज।
गाल फुलाए बैठती,भूषण लेत सहेज।।06
तज दो सभी दहेज को,यह समाज का पाप।
नहीं भ्रूण हत्या करो,यह कलंक अभिशाप।।07
बेटी को जो बेचता,नीच अधम कहलाय।
बेटा लेत दहेज तो,कैसे पगड़ी पाय।।08
पढा लिखा वह बैल है,जिसको बेचा जाय।
पाप अधर्म दहेज है,तीनों लोक नशाय।।09
लाई नहीं दहेज तो,क्यों करते अपमान।
बेटी जैसा मानिए,देगी मान समान।10
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यह मेरी स्वरचित एवं मौलिक
दोहा है।
विजय कुमार,कंकेर,औरंगाबाद।