Type Here to Get Search Results !

गिलहरी

 गिलहरी

आँखे  सुन्दर  रूप मनोहर,

काले लम्बे लकीरें पीठ पर।

पूँछ उठाकर गिलहरी भागती,

डाल - डाल पर दौड़ लगाती।

दोनों   पैरों  पर  बैठ मजे  से,

दाना  हाथ  से  मुँह   लगाती।

कुतर-कुतर कटरोही करकर,

फल खाती कुछ नीचे गिराती।

छत पर  दाना डाल दिया तो,

बड़ी इठलाती मदमाती आती।

बच्चों  से   अपनापन  इसका,

कभी दूर कभी पास आ जाती।

इसे  पकड़ने  को  जी मचलता,

मगर   देखी   इसकी चंचलता।

टिटही -  टिटही  बोल  सुनाती,

यह तो किसी के पले न आती।

बहुत   फूर्तिला है  इसका  देह,

इसमें   जरा  भी  नहीं   संदेह।

इच्छा एकबार पास आ जाती,

हम  बच्चों   को  गले  लगाती।

गिलहरी रामभक्त कहलाती है,

सबको यह  संदेश  सुनाती है।

दान  -पुण्य  करो  यथा  शक्ति,

पूरी  होगी  ईश्वर  सच्ची भक्ति।

***********************


                     विजय कुमार, कंकेर, औरंगाबाद।

Post a Comment

0 Comments
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.