गिलहरी
आँखे सुन्दर रूप मनोहर,
काले लम्बे लकीरें पीठ पर।
पूँछ उठाकर गिलहरी भागती,
डाल - डाल पर दौड़ लगाती।
दोनों पैरों पर बैठ मजे से,
दाना हाथ से मुँह लगाती।
कुतर-कुतर कटरोही करकर,
फल खाती कुछ नीचे गिराती।
छत पर दाना डाल दिया तो,
बड़ी इठलाती मदमाती आती।
बच्चों से अपनापन इसका,
कभी दूर कभी पास आ जाती।
इसे पकड़ने को जी मचलता,
मगर देखी इसकी चंचलता।
टिटही - टिटही बोल सुनाती,
यह तो किसी के पले न आती।
बहुत फूर्तिला है इसका देह,
इसमें जरा भी नहीं संदेह।
इच्छा एकबार पास आ जाती,
हम बच्चों को गले लगाती।
गिलहरी रामभक्त कहलाती है,
सबको यह संदेश सुनाती है।
दान -पुण्य करो यथा शक्ति,
पूरी होगी ईश्वर सच्ची भक्ति।
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विजय कुमार, कंकेर, औरंगाबाद।