लघुकथा
*अंत्येष्टि संस्कार*
बुधन और रतन की गहरी मित्रता थी।बुधन अनपढ़ था और रतन पढा लिखा था।बुधन के पास एक
बिघा जमीन थी।बूढी माँ पत्नी और पाँच बच्चे थे।छोटा बच्चा तीन माह का था। सभी बच्चे अभी छोटे -छोटे थे।
रतन वकील था।बीवी बाल बच्चों के साथ वह शहर में जाकर बस गया था।बुधन की जमीन उसका पड़ोसी हथिया लिया था।इसलिए जमीन का केश रतन ही देखा करता था।बुधन बदले में अन्न.,फल और सब्जी पहुँचाता देता था।रतन के मना करने पर भी कुछ न कुछ दे आता।बेचारा पढ़ा लिखा तो था नहीं कि कहीं नौकरी भी करता।गाँव में रहना खेती करना उसकी मजबूरी थी।
एक दिन बुधन की माँ को ज्वर हुआ और ज्वर इतना तेज था कि दवा का कोई असर नहीं हुआ।माँ स्वर्ग सिधार गई।
माँ की मृत्यु ने इसे बूढ़ा बना दिया।माता की आँचल में वह अपने आप को बच्चा ही समझा करता था।खूब रोया ।लोगों ने सांत्वना दी और शव को दाह संस्कार कराया।
माता के श्राद्धकर्म में बुधन अपने दोस्त रतन को निमंत्रित किया था।आँगन में हडिया बाबा मंत्रोच्चारण कर रहे थे।सामने पूजन सामग्री तथा दान करने के लिए पलंग तोसक रजाई छाता जूता और कपड़ा रखा हुआ था।सामने में दान की ढेर सामग्री पड़ी है।उसी समय रतन अपने पूरे परिवार के साथ पहुँचा।बुधन अपने मित्र को देखकर फूले नहीं समा रहा था।संकेत से ही मित्र को पास में बैठने के लिए कहा।रतन की पत्नी और बच्चे बुधन की पत्नी के पास जाकर बैठ गए।बुधन की पत्नी ने खूब स्वागत किया।
इधर कथा वाचन करते हुए हडिया बाबा समझा रहे थे कि मृत आत्मा की शान्ति के लिए श्राद्ध कर्म आवश्यक है।यहाँ पुत्रों के द्वारा जो पंडितों को दान दिया जाता है ,खिलाया -पिलाया जाता है वे सभी स्वर्ग लोक में मिलता है।दान कभी व्यर्थ नहीं जाता।जिसके परिजन ऐसा नहीं करते उनकी आत्मा भटकती रहती है और भूत प्रेत बनकर अपने परिजन को तंग करते हैं।अतःयहाँ दान करने से मृतक को परलोक में वह सब कुछ मिल जाता है।इसमें तनिक भी शंसय नहीं है।
जो पितरों का श्राद्ध नहीं करते,दान -पुण्य में कमी करते हैं उनकी आत्मा भटकती रहती रहती है।घर में धन दौलत की कमी ,रोग से दुख, जन की हानि होने लगती है।दान -पुण्य कभी व्यर्थ नहीं जाता। इससे सुख समृद्धि बढ़ती है।
इतना सुनकर बुधन को लगा जैसे अपनी माँ के लिए सबकुछ दान कर दे ।जिससे माँ को स्वर्ग में कष्ट न हो।इस बात को सोचकर खूब दान देने का संकल्प लेने लगा।बुधन को लगा कि स्वर्ग में मेरी माँ को कोई भी चीज की कमी न हो।यहाँ मेरा क्या अपने दोस्त रतन से भी मदद ले ले
लूँगा।
अन्त में दान के लिए मंत्रोंचारण किया गया।हडिया बाबा बुधन के हाथ में अक्षत और फूल देकर संकल्प कराया।भूमि दान, स्वर्ण दान,अन्न दान आदि कराने के बाद भोजन किया और घर के लिए दक्षिणा गमछा में बाँध कर चले गये।बुधन मन ही मन प्रसन्न था ।
सभी चले गए थे।दान देने के बाद बुधन के पास एक गाय बच गई थी।जिससे छोटे बच्चों के लिए दूध मिल जाता था।
उधर पंडित जी की निगाहें बुधन की गाय पर टिकी थी।उन्होंने इसे भी दान में लेने का उपाय लगाया और जा पहुँचे बुधन के घर।वहाँ खूब आदर सत्कार हुआ।बुधन ने आने का कारण पूछा,तो पंडित जी कहने लगे ,"क्या बताएँ यजमान,आपकी माँ को सब कुछ मिला पर दूध के बिना सेहत खराब है।यदि गाय दान कर देते तो उन्हें सब पूरा हो जाता।पत्नी के आना कानी.के बाद भी वह गाय दान कर दिया।
अब बुधन के बच्चे बिलखने लगे।घर में अन्न भी न थे।क्या खिलाए क्या पिलाए इसी सोच में डूबा था।बुधन को रहा न गया।वह अपने मित्र के पास जाकर सब हाल सुनाया और कहा कि हमें मदद कीजिए।पर उनके पास भी पैसों की तंगी थी।कोरोना काल में कचहरी बंद थी।जैसे -तैसे जीवन बचा रहे थे।फिर भी मित्र को उस रात रोक लिया।खा पीकर साथ ही सोया।
आधी रात हो रही थी,तभी रतन ने बुधन को झकझोर कर जगाते हुए कहा।देखो,देखो !तुम्हारी माँ।
बुधन उठ बैठा ।बोला किधर है यार?रतन ने कहा, अभी -अभी आयी थी।बोल रही थी कि 'अब मेरे पास स्वर्ग में सब सुख साधन है ।दूध भी मिल रहा है पर कंठ में एक जख्म है।ऑपरेशन की आवश्यकता है।"
बुधन ने कहा,"वहाँ डॉक्टर कैसे भेजा जाए।"
रतन ने कहा,"अरे यार जब हडिया बाबा के दूध खाने से तुम्हारी माँ को मिल सकता है तो फिर उनके गला के ऑपरेशन से माँ का जख्म क्यो नहीं ठीक हो जाएगा।"
बुधन को बातें समझ में आ गयी।उसने सीधे हडिया बाबा के पास पहुँचा। सारी बातें बतायी और कहा कि चलिए आपके गले का ऑपरेशन कराना है।मेरी माँ ठीक हो जाएगी।
पंडित जी मुश्किल में पड़ गये।कहने लगे अरे मूर्ख कहीं मेरे ऑपरेशन से उनका ठीक होगा?
बुधन.ने कहा,"जब आपके ऑपरेशन से वहाँ माँ का जख्म ठीक न होगा।तो आपको दूध और अन्न खाने से उन्हें कैसे मिलेगा?नहीं आपको चलना होगा।पंडित जी गिड़गिड़ा कर कहने लगे ।ले जाओ तुम सब अपना सामान।सब तो यहीं है।मेरा जान छोड़ दो।
हडिया बाबा एक -एक समान गिन- गिन कर देते गए। बुधन लेता गया।घर पहुँकर बुधन ने अपने मित्र को धन्यवाद दिया सभी परिवार पुनःआनंद से जीवन बिताने लगा।🌹🌹🌹🌷🌷🏵️🏵️
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यह मेरी स्वरचित कथा है।
विजय कुमार,कंकेरी,औरंगाबाद।