सागर अथाह मिलता है
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जहाँ पे चाह होती है
वहीं पे राह मिलता है।
जो करने की ईच्छा न हो
सागर अथाह मिलता है।।
जो डरता है उँचाई से
शिखर पे क्या चढ़ेगा वो।
जिसे है मोह जीवन का
समर में क्या लड़ेगा वो।।
न जज्बा जीत का हो तो
जीवन में हार है निश्चित।
जो सच्चा प्यार होगा तो
विरह की मार है निश्चित।।
जो डरता है उजालों से
अंधेरा क्या सहेगा वो।
जिसे आदत न सुनने की
किसी से क्या कहेगा वो।।
नहीं संस्कार हो जिसमें
वो क्या सम्मान पाएगा।
भला करेगा वो किसका
कहाँ पर नाम पाएगा।।
न हो परवाह दुनियां की
वो रिश्ता क्या निभाएगा।
नहीं खुद का ठिकाना हो
पता किसका बताएगा।।
जिसे आदत हो उड़ने की
धरा पर चल न पाएगा।
अगर आदत हो गीरने की
कभी संभल न पाएगा।।
जिसे रोने की हो आदत
भला किसको हँसाएगा।
आदत होगी जो खोने की
कहाँ से कुछ भी पाएगा।।
कवि--प्रेमशंकर प्रेमी (रियासत पवई )औरंगाबाद