पिता
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पिता से मिला पहचान हमें
प्यार और उनका नाम हमें।
कर्तव्य निभाते दशरथ का
हरपल ही माना राम हमें ।।
पाला पोषा और प्यार दिया
हद से बढ़कर दुलार दिया ।
जो भी इच्छा बचपन में थी
पापा ने उसे स्वीकार किया।।
जब भी बाहर से आते थे
वे हमें आवाज लगाते थे।
हम धूल धूसरित दौड़े आते
वे गोद में तुरत बैठाते थे ।।
बाजार से जो कुछ लाते
खाने को हमें पकड़ाते ।
थपकी देते थे गालों पर
बालों को भी सहलाते ।।
माता पिता से बड़ा कोई
भगवान नहीं है दुनिया में।
उनके बिना संतानो का
कोई नाम नहीं है दुनियां में।।
जिसने कंधों पर ढोया हमें
वो पिता हमारे बोझ नहीं।
उनको दुख देने का कोई
मन में हो कलुषित सोच नहीं।।
कवि --प्रेमशंकर प्रेमी (रियासत पवई )औरंगाबाद