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मर्द को सदा समझा जाता बेदर्द । अरविंद अकेला की दिल से उत्पन्न कविता_sahitya kunj


कविता 

मर्द को सदा समझा जाता बेदर्द
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समझ नहीं सका मर्द को कोई जहान में,
नहीं समझ सका उसे कोई देवी,भगवान,
सबने बता दिया मर्द को पत्थर दिल यहाँ,
नहीं बता सका कोई इसे संजीदा इंसान ।

कोई इसे कहता है जोरू  का गुलाम,
कोई आवारा लोफर कह करता बदनाम,
गिर रही दिनोंदिन मर्दों की इज्जत,
जा रही है अब इसकी वो पुरानी शान।

देवता भी करते नारियों  की खुशामद,
करते रहते उनकी झूठी बड़ाई,बखान,
देवता भी कसीदे गढ़ने लगे देवियों के,
बनाने लगे उन्हें सबसे  ऊँचा,महान।

मर्द को सदा समझा जाता बेदर्द,
मिलता नहीं कभी उन्हें उचित सम्मान,
पिसती इसकी जिंदगी हर सुबह शाम,
फिर भी नहीं मिलता  इन्हें कभी मान।

आओ हमसब समझें मर्द के दर्द को,
दें सदा इन्हें उचित आदर,स्थान,
ये भी मान,सम्मान,प्यार के भूखे हैं,
मिलजूल कर करें इनका कल्याण ।

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          अरविन्द अकेला

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2 Comments
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Sushma Singh said…
अति सुन्दर 👍