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शायरी।भुलाऊं भी कैसे, पाऊं भी कैसे,वो नहीं मेरा, दिल को समझाऊं कैसे_sahitya kunj


शायरी
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भुलाऊं   भी   कैसे,  पाऊं   भी  कैसे,
वो  नहीं मेरा, दिल को समझाऊं  कैसे।

है वक्त की दिल्लगी,या मौसम खराब है,
परश्तिश करु किसकी,खुदा मंदिर से  गायब है।

ना  चैन  ना  नींद, ना  आहट  आने  की,
बिस्तर बिछी सलवटें,चाहत सिर्फ उसकी।

जो आग लगी इधर वो आग है उधर भी,
इजहार  करु  कैसे, जमाने  का  डर भी।

प्रसमित उदास  मन, तस्वीर  तेरी  जेहन,
असर सोहबत का, गुम तुझी में हुआ मन।

                     सुषमा सिंह
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(स्वरचित एवं मौलिक)

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2 Comments
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ARVIND AKELA said…
वाह,बहुत खूब।