“ मेरा गॉव”
भाता बहुत मुझे अपना गाँव
आम,नीम, बरगद, पीपल, जामुन के पेड की छांव
प्रदूषण से मुक्त शुद्ध हवा
हर ओर अपनापन दिखता सदा ॥1॥
शहर का कोलाहल कोसो दूर
लहलहाती फसलें देती चैन मन को खूब
वो लाख टके की ज्ञान की बातें
याद आती बो बचपन की कहानी की रातें ॥2॥
वो श्यामा _ रामा गायो का रभाना
लालू_ _ कालू बैलों का कंठी बजाते हुये आना
गान कोयल का कानों में गूंज जाना
मिठ्ठू का सीता_ राम की रट लगाना
गांव की याद दिलाता है ॥3 I
भोर होते ही मुर्गे की बाग
पंख फैलाते हुये मोरों का नाच
चिडियों का फुदकना,चहचहाना
सुबह, शाम पक्षियों का आसमान में निकलना
गांव की याद दिलाता है
मन को ये भाता है ॥4॥
हर दुबिधा, मसलो का हल करती पंचायत
स्कूल,अस्पताल,डाँकखाना, बैक सभी पास तलक
बैलगाड़ी से सैर था यादगार
प्रेम से बैठकर जाते मंडी, हाट बाजार ॥5॥
गाँव के वो संस्कार
अन्जान भी आये द्वार करो सत्कार
गुम हो गये शहर मे
खो गये भागदौड के सफर में ॥6॥
देश की सभ्यता, संस्कृति की छाँव है गाँव
तकनीकी पहुँचती जाती अब हर गाँव
विकसित होते मुल्क की पहचान बनते गाँव
आत्मनिर्भरता की इबारत लिख रहे अब गांव ॥7॥
अन्नदाता के होटों पर रहे सदा मुस्कान
गाँव हम भारतीयों की पहचान
सोंधी - सोंधी मिट्टी की खुश्बू रहती सदा याद
चन्दन सी इस माटी पर जन_जन को नाज ॥8॥
परअब शहर पहुंचता जाता गांव में
मानो छेद हो रहा नाव में
दरिया दिली अपनाये शहर की भागती जिन्दगी
गाँव से सीखी थी ईसानियत,
अविरल,दिल मे रख जिये हम सभी ॥9॥
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CR आदित्य अविरल, ओज कवि, ग्वालियर, म. प्र.