घूंघट डाल ले रे गुजरिया घुंघट काड ले
घूंघट में मेरा जिया घबरा घबरा जाते छोरे
कहना मान लें रे गुजरिया कहनो मान लें
गांव की सारी लुगाइयां बदनामी करे तेरी
जा देश सारी लुगाइयां लम्बो घूंघट काढ़े
गांव में हमारे यहीं रिवाज रित पुरनी चालें
जा गांव की सारी लुगाइयां सांवली काली हो
मैं गोरी चांद सा मुखड़ा मेरा मैं कैसे घूंघट डालू
मेरे रूप के दिवाने पंच सरपंच कोटवाल पुजारी
मेरा रंग रूप देखने को सारा गांव बैचैन रे छोरे
दिन बन जाते उन दिवानौ का जो दीदार हो मेरा
घूंघट डाल ले रे गुजरिया घुंघट काड ले रे गुजरिया
मैं ना डालू घुंघट मै रूप की रानी कैसे घुंघट डालू
घूंघट डाल ले रे गुजरिया घुंघट काड ले रे गुजरिया।
अलका जैन इंदौर मध्यप्रदेश
बीएससी दूरदर्शन और आकाशवाणी में कविता पाठ गोल्डन बुक ओफ वर्ल्ड रिकॉर्ड होल्डर महिला कोमेडियन भी
विभिन्न अखबारों में कविता लेख आदि प्रकाशित
विभिन्न संगठनों द्वारा सम्मानित
देश के विभिन्न शहरों में कविता पाठ