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काव्य प्रतियोगिता।घूंघट डाल ले रे गुजरिया_alka jain

घूंघट डाल ले रे गुजरिया घुंघट काड ले
घूंघट में मेरा जिया घबरा घबरा जाते छोरे
कहना मान लें रे गुजरिया कहनो मान लें
गांव की सारी लुगाइयां  बदनामी करे तेरी
जा देश  सारी लुगाइयां लम्बो  घूंघट काढ़े
गांव में हमारे यहीं रिवाज  रित  पुरनी चालें
जा गांव की सारी लुगाइयां सांवली काली हो
मैं गोरी चांद  सा मुखड़ा मेरा मैं कैसे घूंघट डालू
मेरे रूप के दिवाने पंच सरपंच  कोटवाल पुजारी
 मेरा रंग रूप देखने को सारा गांव  बैचैन रे छोरे
दिन बन जाते  उन  दिवानौ का जो दीदार हो मेरा
घूंघट डाल ले रे गुजरिया घुंघट काड ले रे गुजरिया
मैं ना डालू घुंघट   मै‌ रूप की रानी कैसे घुंघट डालू
घूंघट डाल ले रे गुजरिया घुंघट काड ले रे गुजरिया।


अलका जैन इंदौर मध्यप्रदेश
बीएससी दूरदर्शन और आकाशवाणी में कविता पाठ गोल्डन बुक ओफ वर्ल्ड रिकॉर्ड होल्डर महिला कोमेडियन भी
विभिन्न अखबारों में कविता लेख आदि प्रकाशित
विभिन्न संगठनों द्वारा सम्मानित
देश के विभिन्न शहरों में कविता पाठ
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