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(दोहा) पैसा


 *पैसा*

पैसा माया मोह के ,जाल बुनत सब कोय।

बिन पैसा संसार में,मान कहाँ से होय।।01


पैसा को संचित करें,आवे समये  काम।

पत्नी गाल फुलाय तो,जेवर का दो दाम।।02


पैसा जिसके पास है,मिले सभी का साथ।

यही नहीं तो दोस्त भी,खींच लेत हैं हाथ।।03


दर्वे से सर्वे करै, बिन पैसा सब सून।

डिग जाता ईमान है,पैसा करता खून।।04


पैसा से बनता नहीं,संस्कार शीलवान।

रखिए अच्छी भावना, जग का हो कल्याण।।05


पैसा देखो आज है,कल्ह किसी के हाथ।

 अहंकार मत कीजिए,नहीं सभी दिन साथ।।06


पैसा पैसा के लिए,मत बेचो ईमान।

दान धरम कुछ कीजिए,मत बनिए शैतान।।07


पैसा से बिकने लगा,न्याय नीति ईमान।

अब यकीन मुश्किल हुआ,धरम करम कर दान।।08

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यह मेरी मौलिक एवं स्वरचित दोहा है।

विजय कुमार, कंकेर,औरंगाबाद।

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