*मैं बीमार हूँ*
मैं बीमार हूँ। पूरे तन में दर्द ,मन मिचलाना,आँखें लाल थी।शायद ज्वर के कारण हो। झोला छाप डॉक्टर आए ।उन्होंने दवा दी।दवा खाया ।पर कोई असर नहीं।दो दिन बाद मुँह में छाले पड़ गये।दाँतों में भी दर्द।सभी बीमारी से ज्यादा मैं दाँत दर्द से परेशान था।पता ही नहीं चलता कि दाँत में दर्द है या.कान में सिर में दर्द है या जीभ में। मेरी पत्नी तेल लेकर आयी।मुझसे बोली,"पैर इधर कीजिए।आपको मैं तेल लगा देती हूँ।"मुझे भी लगा थोड़ा दर्द कम.हो जाएगा।मैंने पैर धीरे- धीरे बढाया।फिर भी पैर का दर्द दूर न हुआ।वह पूरे शरीर में इस कदर तेल लगायी जैसे आम काअचार ।मैने कहा, रहने दो भाग्यवान तुम थक गयी होगी।उसने कहा,क्या अभी भी दर्द है?मैंने कहा, हाँ।वह झटपट मेरे पैर पर चढकर अपने पैर से धाँगने लगी।दर्द दूर तो हुआ पर बाये पैर की हड्डी चूर हो गयी।अब तो उठने बैठने से लाचार।
यह समाचार ससुराल पहुँचा जैसे बिजली का स्विच दबाते ही बल्ब जल जाती है।लोगों का आना -जाना लगा रहा।मेरे पॉकेट पर बोझ बढता गया।किसी- किसी से आदरपूर्वक सामान मँगवाते।स्वयं तो जा नहीं सकते थे।आए हुए अतिथियों का स्वागत भी करना होता है।पत्नी परेशान।लोगों का आना जाना लगा रहा।मैं बीमार हूँ ।फिर भी हमसे
ज्यादा सेवा अतिथियों को होने लगा।नास्ता,चाय,भोजन,फिर शाम तक नास्ता चाय रात्रि में भोजन।
मैंने कहा ,अरे भाई यही होता रहेगा तो मैं मर जाऊँगा।मुझे अस्पताल ले चलो।सबने सहमति जतायी।मैंने कहा ,पर मेरे पास पैसे नहीं है।आप सभी को ही पैसा देना होगा।
अब क्या था पैसे के नाम पर सभी किनारा पकड़ने लगे। धीरे -धीरे मदद वाली बात आग की तरह रिश्तेदारों में फैल गयी।उनके पास जाओगे देखने तो पैसो की माँग होगी।इस खबर को सुनकर सभी किनारा पकड़ लिए तब जाकर मैंने एक टेम्पू वाले को बुलाया।उससे मैं और मेरी पत्नी अस्पताल गये।डॉक्टर ने एक्स रे किया और फिर देखकर बताया इनका दायाँ पैर काटना पड़ेगा।मैने कहा ,डॉक्टर साहब दाहिना तो ठीक है।बाँये पैर की हड्डी टूटी है।डॉक्टर साहब ने पत्नी से कहा,लीजिए इनको समझाइए।मैं बारह लाख डोनेशन देकर डॉक्टरी की पढाई की है । क्या मुझे नहीं बुझा रहा है।पत्नी डॉक्टर के हाँ में हाँ मिलाई।पत्नी ने कहा,ई ऐसे ही मेरी बात भी काटते रहते हैं।इनकी आदत हो गई है।आप इलाज कीजिये डॉक्टर साहब।मैंने चीखते हुए कहा,नहीं मैं सही कह रहा हूँ।पत्नी बोली, चुप रहिए क्या आपको डॉक्टर साहब से ज्यादा बुझा रहा है।मैं पत्नी के डर से कुछ नहीं बोला।पर डॉक्टर साहब से अनुरोध करते हुए कहा, डॉक्टर साहब मेरा फी रख लीजिए पर मुझे मेरी हालत पर छोड़ दीजिए।
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यह मेरी मौलिक एवं स्वरचित रचना है।
विजय कुमार,कंकेर