अपना गांव
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बहुत याद आता है,
मुझे अपना गांव,
वो लहलहाते खेत,
वो बरगद की छांव ।
काकी की कहानियां,
हरे मटर की फलियां,
वो पनघट की भीड़,
और कंटीली झाड़ियां।
दूर तक फैला हुआ,
घना पेड़ बसवारी का,
मवेशियों का रंभाना,
सोंधी महक क्यारी का।
सुबह सुबह हर मुंडेरों पर,
गौरैयों का चहचहाना,
और अहले सुबह में,
मूरगे का बांग लगाना ।
लालटेन की रोशनी में,
चटाई बिछाकर पढ़ना,
पढ़ते पढ़ते एकबारगी,
आपस में झगड़ पड़ना ।
अल्हडपन वो शोखियां,
जाने गुंम हो गये कहां,
चुभने लगा शहर अब,
मन भी रमता नहीं जहाँ ।
सभ्य हो गये तनिक,
शहर में आ करके,
रीछ जैसे लगते हैं,
वाशिदे यहां हो करके।
मन चाहता फ़िर से
गांवों में लौट जाना,
बारिशों में भींगना
हवाओं संग दौडना ।
बहुत याद आता है
मुझे अपना गांव ।
सुषमा सिंह
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सर्वाधिकार सुरक्षित एवं मौलिक
♥️👌mam
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