हास्य रचना
*स्वादिष्ट खीर*
गौरी लाल विद्यालय आए,
माँ शारदे को शीश नवाए।
हाजिरी लेने गये क्लास में,
बच्चे बैठे थे इनकी आश में।
हो -हो,हो-हो बच्चे चिल्लाए,
मास्टर जी तब छड़ी उठाए।
बच्चों की हाजरी लेकर,
पूछने लगे कहाँ है शेखर।
वह शिष्य था बहुत ही प्यारा,
माता --पिता का राज दुलारा।
तब तक पहुँच गया था शेखर,
मिट्टी के वर्तन में खीर लेकर।
मम्मी बनायी है ऐसा बोला,
गुरू जी ने अपना मुँह खोला।
क्या क्या डालकर इसे बनायी,
स्वाद ले लेकर खीर भी खायी।
शेखर मन-ही- मन मुस्काया,
स्वादिष्ट खीर का विधि बताया।
सर जी मम्मी ने खीर बनाई,
घर की बिल्ली उसे जुठाई।
वही खीर को आपने खाया,
गौरी लाल ने मुँह बिचकाया।
गुस्से से जोर - जोर चिल्लाया,
खीर भी पेट से बाहर आया।
फूटा बर्तन हुआ आग बबूला,
शेखर उनसे रो रोकर बोला।
अब तो मम्मी मुझको मारेगी,
सारा गुस्सा हमी पर झारेगी।
शेखर अपने हाथ को जोड़ा,
जिस मटके को आपने फोड़ा।
उसमें सारा जूठा फेंकाता था,
उसमें घर का कुत्ता खाता था।
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यह मेरी स्वरचित हास्य रचना है।
विजय कुमार,कंकेर,औरंगाबाद।