गोस्वामी तुलसीदास काव्य महोत्सव
आओ चलें हम गाँव की ओर
आओ चलें हम गाँव की ओर
जहाँ दिलों में रहता अंजोर
शहर की कालिमा जहाँ नहीं ब्यापे
सुख की तरंगें लेती जहाँ हिलोर,
कम साधन में जीवन जीते
संतोष से वे सुखी हैं रहते,
परिवार का महत्त्व हैं समझते,
दालान पर रामायण होती है पुरजोर
आओ चलें हम गाँव की ओर,
कहीं होरी और कहीँ माधव
हल लेकर सुख से अपार,
और धनिया की दावेदारी
बताती नारी है सुखकारी,
खेतों से चलती पुरवा हवा
करती सुख की सीमा पार,
धान की हरी-हरी बालियाँ
धरती का करतीं श्रृंगार
आओ चलें हम गाँव की ओर,
मिलजुल बच्चे शोर मचाते
सारे गाँव में रौनक लाते,
निरहुआ काका से छुप-छुपकर
आम के बौरों को तोड़ लाते
और पकड़े जांने पर
उनकी हल्की-सी चपत हैं खाते,
पिता के पिटाई के डर से
माँ के आँचल में छुप जाते,
आओ चलें हम गाँव की ओर,
जहाँ पर्यावरण स्वच्छ है रहता
मन उन्मुक्त हवा में साँसें लेता,
कभी पड़ोसी के घर जाकर भी
खाना-पीना हमारा होता,
नहीं कहीँ पर कोई रोक-टोक
सारा गाँव परिवार होता,
चाचा-ताऊ के साथ जहाँ
बबुआ खेत-खलिहान घुमता,
जहाँ गैया रंभा कर मचाती शोर,
आओ चलें हम गाँव की ओर,
गाँव इस धरती पर होता
स्वर्ग की एक छोटी-सी निशानी,
ये भारत-माँ के आँचल हैं
अकथनीय है जिसकी कहानी,
गाँवों में निर्ब्याज सौंदर्य है,
जो आत्मा को मोह लेता है,
इसकी मिट्टी में लोटकर
मन स्वर्ग का आनंद पा लेता है,
आओ चलें हम गाँव की ओर,
भारत का हर गाँव
वृन्दावन की सैर कराता,
जहाँ हर बालक में
कन्हैया खेलता और मुस्काता,
भारत के हर गाँव में
बरसाना भी रमता है
राधा रुप में बालिका जहाँ
नारी-शक्ति बन मुस्काती है,
जहाँ नंद बाबा होते और
होती यशोदा मैया है,
आओ चलें हम गाँव की ओर
डा अम्बे कुमारी
सहायक प्राचार्या
हिन्दी विभाग
मगध विश्वविद्यालय
बोधगया
स्वरचित एवं अप्रकाशित
इस कविता के माध्यम से ग्रामीण परिवेश एवं उसकी महत्ता को दर्शाया गया है Maushami Assistant Professor M.U BodhGaya
न्दी विभागाध्यक्ष, मगध विश्वविद्यालय, बोधगया