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तुलसीदास काव्य प्रतियोगिता में गाँव का चूल्हा_palo

*गाँव का चूल्हा* 
भारत है गाँवों का देश ।
गाँव के आहार निर्माण की कला,
चूल्हा जलाना व चूल्हा बनाना,
बड़ा ही श्रम साध्य  था कृत्य।
मिट्टी  व भूसे से चूल्हा गाँव में, 
घर की महिलाएँ  बनाती ।
सूखी लकड़ियाँ चूल्हे में  डालकर,
चूल्हा जलाया  करती ।
गृहिणियों के हाथों की, 
कुशलता बड़ी  अनूठी ।
हस्त युगल से गोल-गोल,
सुन्दर  रोटियाँ  बनाती ।
पहले तवे पर हल्का सेंक कर,
फिर  चूल्हे पर  रोटियाँ, 
गुब्बारे की भाँति फुलायी जाती ।
कपड़े पर  झाड़कर रोटियों ,
की राख हटायी जाती  ।
 पूरा दिन भोजन पकाने व
 खिलाने का क्रम चला करता।
चूल्हा सुबह से शाम तक,
अनवरत जला रहता ।
चूल्हे  के भोजन में,
जो मिठास होती, 
वह मिठास अब नहीं  मिलती ।
                *डा वत्सला*,सह- आचार्य संस्कृत राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय झालावाड़, सह आचार्य संस्कृत

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