*गाँव का चूल्हा*
भारत है गाँवों का देश ।
गाँव के आहार निर्माण की कला,
चूल्हा जलाना व चूल्हा बनाना,
बड़ा ही श्रम साध्य था कृत्य।
मिट्टी व भूसे से चूल्हा गाँव में,
घर की महिलाएँ बनाती ।
सूखी लकड़ियाँ चूल्हे में डालकर,
चूल्हा जलाया करती ।
गृहिणियों के हाथों की,
कुशलता बड़ी अनूठी ।
हस्त युगल से गोल-गोल,
सुन्दर रोटियाँ बनाती ।
पहले तवे पर हल्का सेंक कर,
फिर चूल्हे पर रोटियाँ,
गुब्बारे की भाँति फुलायी जाती ।
कपड़े पर झाड़कर रोटियों ,
की राख हटायी जाती ।
पूरा दिन भोजन पकाने व
खिलाने का क्रम चला करता।
चूल्हा सुबह से शाम तक,
अनवरत जला रहता ।
चूल्हे के भोजन में,
जो मिठास होती,
वह मिठास अब नहीं मिलती ।
*डा वत्सला*,सह- आचार्य संस्कृत राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय झालावाड़, सह आचार्य संस्कृत