गांव
धरती पर है स्वर्ग बनाता ,
पीपल बरगद छाँव है।
अति प्रिय मादक रस है बहता,
सबको मिलती ठाँव है।
शीतल मंद सुगंध पवन है,
सुन्दर सबके भाव हैं।
छूता हृदय सभी का डोले,
संबंधों में चाव है।
आपस में चौपाल लगाते,
भरते सब के घाव हैं।
करते बड़ों का सम्मान हैं,
छूते उनके पांव हैं।
महक महक चलती पुरवाई,
कौवा करते काँव हैं।
इक दूजे से मिलते रहते ,
आपस बने लगाव है।
जहां रह कर खुश मन होता,
वही हमारा गाँव है।
"अपराजिता "भी गांव रहती ,
भरती सुन्दर भाव है।
गीता पांडे अपराजिता रायबरेली उत्तर प्रदेश 94 1571 8838