मिट्टी
काया मिट्टी, छाया मिट्टी, मिट्टी है दुख मेटन।
मेटन मिट्टी से रंगा है, तन-मन ,घर और आंगन।।
आंगन में सौंधी खुश्बू, मिट्टी की कुछ यूँ महके।
महके खुशियाँ, तन-मन, कृषि, खेतों की झूमें लहकें।।
लहकें फसलें जब खेतों में,तब कण-कण जीवित होता।
होता श्रम का फल मीठा मन, पाता फल तन जो बोता।।
बोता खेतों में हलधर कुछ, जीवन, सपने, उम्मीदें।
उम्मीदें जो धीरज और सोच की, पौध को पल-पल सींचे।।
सींचे बचपन, यौवन, धन, बल और, भाव को सींचे माटी।
माटी मैया की गोद लगे, माटी पितु प्रेम की पाटी।।
पाटी पनपाया अनुपम गुण, जीवन का सच बतलाया।
बतलाया देने में सुख, नश्वर जीवन धन काया
स्वरचित, मौलिक ,द्वारा:
रूबी जैन 'राजे', देहरादून- उत्तराखंड।