कोई अदृश्य बाज है
****************
भुल जो हुई है तुमसे,
उसमें अब सुधार कर।
डर को मन से मिटा दे,
मुश्किलों को पार कर।।
है कठिन परीक्षा तेरी,
जो सफल कर जाएगा।
सोच ले जीवन तेरा,
उस दिन संभल जाएगा।।
पाया है मानव का तन,
राह किसका देखता।
कर्म अपना कर यहाँ,
क्यूँ दूसरों पर फेंकता।।
जो करेगा कर्म यहाँ,
फल उसी का पाएगा।
जाएगा जब तू यहाँ से,
साथ क्या ले जाएगा।।
दूसरों में देखता क्यों,
दोष अपना ढूंढ ले ।
जो दिखे गलत कहीं,
तू आँख अपनी मूंद ले।।
अब बदल चुका जमाना,
उस में जीना सीख ले।
इस धरा पर तू जहर का,
घूँट पीना सीख ले।।
जो अकड़ता है यहाँ,
उसे कभी पकड़ नहीं।
राह अलग चुन अपना,
उससे तू झगड़ नहीं।।
बात जो न तुम सुनोगे,
तो पीछे पछताओगे।
चुग गई चिड़ियाँ खेती,
तो क्या यहाँ पाओगे।।
दिखता अब जो यहाँ ,
होता नहीं वो काज है।
जो भी हो रहा है अब,
वोआज गहरा राज है।।
है वही संगीत लेकिन,
दिखता न साज अब।
जो हमेशा दिखता था,
दिखता न आज अब।।
जो बचाता जिसकोअब,
गीरता उसी पर गाज है।
तन को नोचता यहाँ अब,
कोई अदृश्य बाज है।।
कवि---प्रेमशंकर प्रेमी (रियासत पवई) औरंगाबाद