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तुलसीदास काव्य प्रतियोगिता।स्वदेशी गांव_saahity

स्वदेशी मेरा गाँव 

स्वदेशी है मेरा गाँव,यहाँ आकर ठंडी-ठंडी मिलती छाँव, 

झींगुर बोले जैसे नई बहुरिया चले छम-छम बोले पाँव।

मेरे आँगन के कोना देखती प्यारी जिसमे अमराई बौराए ,
कुहू- कुहू के कोमल स्वर में कोयल तान सुन्दर सुनाए।

दौड़ गली की ओर बढ़ रही ननुवा की तेज गाईया, 
रामू काका काधे पर डंडी बन बैठे मल्हार गवईया। 

हृदय हुए ज्यों हरे -हरे पर्वत अथवा हरे- भरे उपवन ,
मोर नाच रहे जैसे ताल पर मोरनी का बन नव जीवन। 

बिना जतन बिना यत्न के मेरे गाँव हरियाली हरियाए ,
और प्रकृति भी हमें प्यार से सुत समान दुलराए। 

हर आँगन में आँवला, नीम, वट,पीपल दिख जाए, 
गौ माता संग बछड़े को शीतलता बाँटें उनकी मृदु छायाएँ।

हर पंछी को मिलता बसेरा,पशु को दाना-पानी,
मौसम भी सुहाना जब पवन चले अपनी मनमानी ।

द्वारा-द्वार पर सबके तुलसी बिरवे पावनता फैलाएं,
पुष्प वृक्ष-लता घर-परिवारो में शुभ उल्लास जगाएँ।

चहकें विटपों की फुनगी पर फुदक-फुदक गौरेया, 
भीतर तक हुआ है सबका तृप्त फिर हर घर का रहवैया।

खेतो की हरियाली चादर हम धरा को नीत ओढ़ाएँ ,
इस प्रकार हम संतानों का महत्व श्रेय-सौभाग्य पा जाएँ।


डॉक्टर रश्मि शुक्ला 
प्रयागराज 
उत्तर प्रदेश
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