गांव बहुत याद आता है।
प्राकृतिक सुंदरता का मेरा गांव,
हर पल हमें लुभाता है।
शहर की चकाचौंध में भी,
गांव बहुत याद आता है।
मिट्टी से लिपटा बचपन,
ताल तलैया सुहाता है।
वट के नीचे, यारो संग,
बेर खाना याद आता है्।
हरियाली से आच्छादित बावली,
जहां वन में मोर मंडराता है।
गांव के मनमोहक महक से,
मन भी महक महक जाता है।
गांव की वह चौपाल जहां पर,
बुजुर्गो का मेला जमता है।
हर आने जाने वालों पर,
चौकन्नी नज़र रखता है।
गांव की बेटी,हर घर की बेटी्,
आशिष सभी का मिलता है।
जिससे जैसे बन पड़े,
बेटी को वह देता है।
किसी के दुःख सुख में,
सारा गांव उमड़ता है।
अपने अपने तरीके से,
हरसंभव सहायता करता है।
यहां पर स्थित माता का मंदिर,
रह-रह कर हमें बुलाता है।
मां महामाया का अनुपम रुप,
मां का चौखट याद आता है।
प्रसाधनों की अनंत चाह में,
गांव को पीछे छोड़ गए।
जीवन के इस भाग दौड़ में,
शहर के होकर रह गए।
मेरे गांव की सोंधी महक,
अब भी हमें रिझाती है।
गांव वालों का अपनापन,
गांव में फिर बुलाती है।
करते सभी खेती किसानी,
शाक भी उगाया जाता है।
हर घर में यहां के सदस्य रुप में,
गाय,बैल पाया जाता है।
पढ़ने को हर बच्चा यहां का,
सरकारी पाठशाला जाता है।
शिक्षा के साथ संस्कार भी,
जहां उन्हें सिखाया जाता है।
गुल्ली-डंडा, कबड्डी,खो खो, क्रिकेट,
खेल यही खेला जाता है।
फिर गांव के सारे बच्चों को,
मैदान में थकाया जाता है।
किसी के घर भी खा लिया,
बच्चा कही भी सो जाता है।
शांत, सुरम्य वातावरण का,
गांव बहुत याद आता है।
इतने वर्षों बाद भी,
मन वहीं लौटना चाहता है।
भूले बिसरे लम्हों को,
समेट लेना चाहता है।
गांव की वह बारिश की बूंदें,
कागज का नाव याद आता है।
शहर की चकाचौंध में भी,
गांव बहुत याद आता है।
लेखिका
शिखा गोस्वामी
मारो (छत्तीसगढ़)
Gaov me gujare huye lamhe yaad aane lga
बहुत बढ़िया शिखा
लेखनी अनवरत चलती रहे,, शुभकामनाएं
कष्टों को कर बेअसर, खुशियों को समा में तुमने जोड़ी।
बहुत ही सुंदर💖 कविता लिखी है आपने 👌👍🔥🔥🔥
All the best
very appreciative poem.... Good Luck!