बरखा
आओ बरखा छमाछम बरसो।
गाँव की डगरिया भीगी हो जाये।
कृषक मुख पे मुस्कान चली आये।
सुखे ताल -तलैया पोखर भर जाए।
खेतों की माटी भी तृप्त हो जाये।
आओ बरखा छमाछम बरसो।
नदी नाले कलकल निनाद कर बहे।
खुशी से गाय बछिया के दिल बहले।
धरणी की हरीतिमा झूमने लग जाये।
खग -विहंग डाल-डाल पर नृत्य करें।
आओ बरखा छमाछम बरसो
तरू शाखा पे पात-पात खिल उठे।
रवि ताप से प्राणी निजात पाये।
गगन में उमड़ घुमड़ बदरा देखें।
नर नारी बुलाए गुडधानी खाने।
आओ बरखा छमाछम बरसो।
सावन के गीतों में पुलकित हो जाये।
सजनी साजन मिलन की पीर लिए।
दूर देश से आया जलदराज नभ में।
अविरल नेह के आश्रु मोती प्रेम भरे।
आओ बरखा छमाछम बरसो।
अमिता मराठे
स्वरचित
अप्रकाशित
इंदौर, मध्यप्रदेश
7389707831