विकसित हुऐ गांव
देश पूरा हो गया डिजिटल,गांवो में भी हुई है हलचल,
वहां पर भी डिज़ीटली ही, लेन- देन होता है पल-पल।
शहरों में पानी तो देखो, बोतल में बिकता है आजकल,
और गांव में शुद्ध जल की,धारा बहती रहती कल-कल।
बारिश आती खेत जोतने,कृषक निकल पड़े लेकर हल,
रिमझिम बारिश में भीगकर, बच्चे करते खूब कोलाहल।
शुद्ध हवा है मिले जहां पर, प्रकृति मोहे मन को हर-पल,
ऐसा सुंदर दृश्य जहां पर,बहता है निर्मल जल कल-कल।
इंटरनेट का गांव में भी,दिखता है अब असर भी पल-पल,
ऑनलाइन पर कार्य करते, दिखते हैं कई बच्चे आजकल।
हैं जीवित रखते संस्कारों को, नही भूलते हैं पिछला कल,
विकसित हो रहे गांव भी, अब वे सुधार रहे हैं अपना कल।
डॉ. अर्चना राठौर
लेखिका एवं समाज सेविका
झाबुआ, (म.प्र.)
पिन- ४५७६६१
चलित दूरभाष-७८६०८५६५
मुझे पता है आप भी बहुत अच्छा लिखते हैं।इसलिए पढ़ने का शौक भी रखते हैं।