न विद्या विलक्षण,
ना धन का धनी हूंँ,
ना प्रिय भाषी,
ना कोई कवि हूँ,
सभा को रिझाने,
लायक न गायक,
तुम्हारे बिना मेरा
कौन सहायक ,
तुम्ही जग के दाता,
हो जन्मदाता,
तुम्ही मेरी पहली,
आखरी आशा ।
टूट गए मेरे
सपने सारे ,
गम का सागर
मारे हिलोरे ,
तट पर खड़ा मैं ,
तुझको निहारुं,
तुम्हारे बिना मेरा,
कौन सहायक ,
तुम्ही जग के दाता,
हो जन्मदाता,
तुम्ही मेरी पहली आखरी आशा।
दिन रात में
ढलने लगा है उजालो को अंधेरा
निगलने लगा है,
निराशा के बादल
छाने लगे हैं,
तुम्ही सुख के दाता,
तुम्ही हो विधायक,
तुम्हारे बिना मेरा
कौन सहायक ,
तुम्ही जग के दाता,
हो जन्म दाता ,
तुम्ही मेरी पहली
आखरी आशा।
--रमा बहेड हैदराबाद