गाॅंव मेरा है सुकून की छाॅऺंव
गाॅंव मेरा है प्रेम का खलिहान
प्रेम की धारा बहती है जहाॅऺं
स्वच्छ हवा बहती है वहाॅं
द्वेष नहीं प्रेम है जहाॅऺं
राग नहीं अनुराग है वहाॅऺं
दिलों में सबका वास है जहाॅऺं
बेरोकटोक हर घर में आना जाना है वहाॅऺं
किसी एक को दर्द होता जहाॅऺं
सब दौड़ कर चले आते वहाॅऺं
बिना रिश्ते सब साथ खुशियाॅऺं मनाते जहाॅऺं
मंगल गीत सब मिल गाते वहाॅऺं
नदियां की धारा का संगीत बहता जहाॅऺं
कोयल की कूक से तरन्नुम बजता वहाॅऺं
गाॅंव मेरा है शान्ति का बसेरा
गाॅंव मेरा है सुकून की छाॅऺंव
गाॅंव मेरा है प्रेम का खलिहान
© संजीव शर्मा, राजस्थान
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आप द्वारा इस कविता के माध्यम से गांव के वातावरण, लोगों के व्यवहार तथा प्रेम सद्भाव के साथ साथ सुकून और शांति का बहुत ही सटीक एवं सुंदर शब्दों में सार्थकता सहित परिचय दिया गया है ।
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शैलेश जैन