Type Here to Get Search Results !

तुलसीदास काव्य प्रतियोगिता। ग्रामीण परिवेश_shivshankar



*ग्रामीण परिवेश*

अपने गाँव की याद
आती है मुझे शहर में रहकर
मेरा जन्म हुआ वहां,
पला बढ़ा खेला कूदा,
गाँव की मिट्टी मे
मंद मंद पुरवाई का चलना,
चारपाई छोड़ने का जी ना करना
बार बार अम्मा का उठाना,
डाट फटकार सुनना
सुबह जब भोर मे,
नीम की दातुन करना
सिकहार पर रखी,
बासी रोटी खाना
फिर गाय भैसों को,
सखा के साथ चराने जाना
दुपहरिया मे नदी किनारे,
बूढ़े बरगद की छाँव मे सुस्ताना
नदी मे जानवरों को स्नान करवाना,
फिर खुद भी नदी मे तैरना
मिट्टी के चूल्हे की आँच पर,
मोटी रोटी का स्वाद
आलू का भर्ता,घर की छाछ,
नमक मिर्च की चटनी,और प्याज
फिर स्वाद के क्या कहने, वाह
गाँव की चौपाल मे, बुजुर्गो के संग,
हुक्कों की गुड गुडअाहाट सुनाई देना
चांदनी रात मे,
आसमान के सारे तारे गिन लेना
जब भी कोई आता मेहमान घर पर,
गुड़ के साथ पानी पिलाना
गाँव के मेले का आनंद
ही कुछ और है आता
बरसात जब आती
कोयल और मोर की
आवाज सुनाई देती
किसान धान की बियाड
लगते आपने खेतों मे
गीत गाते सब नर नारी
बेलों की जोड़ियां हल के साथ
दिखाई जब देती खेतों मे
मस्त हो जाते सब किसान भाई
क्या जिंदगी थी,
भीड़-भाड़ व प्रदूषण  रहित
शहर मैं जिंदगी भले आराम परास्त है,
पर सुकून तो गांव की मिट्टी
व गाँव के दृश्य मे है

शिवशंकर लोध राजपूत ✍️
(दिल्ली)
व्हाट्सप्प no.7217618716


Tags

Post a Comment

0 Comments
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.