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दर्द का इम्तहान_sushma singh

दर्द का इम्तहान
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  हाथ   में   खंजर, जिहृवा पर शक्कर।
  हाले  गम पूछने  वो आते हैं अक्सर।।

 ना होते एक से दिन,ना होती वैसी रातें।
 मेरे दर्द का इम्तहान, लेते हैं जाते जाते।।

 ख़ामोश लब मेरे ना आंखों  में  है पानी।
यूंही कट जाएंगे दिन क्या सुनाऊं कहानी।।

 दर्द  पी रहा हूं , हाॅं  मै  जी  रहा हूं।
 आहिस्ता-आहिस्ता सही सफर कर रहा हूं।।

 हैरां होते  हैं  वो, देख  मेरी भंगिमा।
 ना शिकवा ना शिकायत,ना होठों पर गिला।।

 नहीं चाहिए मुझको,झूठे शब्दों के मरहम।
अपनी  जिन्दगी  में  काटूंगा  अपने दम ।।
                                 सुषमा सिंह
                                  औरंगाबाद
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( सर्वाधिकार सुरक्षित एवं मौलिक)

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2 Comments
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ARVIND AKELA said…
वाह,बहुत खूब।