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ग्राम परिवेश। काव्य प्रतियोगिता_vinayak pandey

*ग्राम परिवेश*

परिवेश मेरे गाँव का,
जाना है मैं ने इस वर्ष,
जाना है गाँव की भव्यता को,
और झेला है दरिद्रता को भी,

इस बार बन बैठा था बोझ,
अपनी ही कर्म भूमि पर,
जिसे बनाया था मैंने,
अपने ही बाहुबल से,
न ढल सका उसीके परिवेश में,
औ बन गया प्रवासी मैं अपने ही देश में,

पहुंचा नगर को महानगर बना,
बेमूल्य हो अपने गाँव मे,
मगर परिवेश कुछ भिन्न न लगा शहर से,
फर्क़ बस भीड़ का था,
वहाँ गैरों मे अकेले थे,
औ यहां अपनों के बीच तन्हा,

महाभारत अतीत नहीं,
वो आज है और कल भी होगी,
द्रौपदी तो मात्र बहाना थी,
ज़मी तो हस्तिनापुर कि हथियानी थी,
पुश्तैनी ज़मी के खातिर,
जंग वही पुरानी सी,

आज भी नहीं सुरक्षित यहां,
घर कि बेटी हो या पत्नियां,
सोच अभी भी वहीं कहीं हैं,
जाती हो या लड़कियाँ,
अपनी है तो इज्ज़त नहीं तो गालियाँ,

यहाँ नहीं केवल राम घरों मे,
कंस भी साथ मे रहता है,
एक जो पिता को ईश्वर माने,
दूसरा गालियां देता है,
मर्यादा को भूला शहर,
अपने सांकल मे करता गाँव,

दिखा की दुखा हृदय ऐसा,
अपने गाँव को बदलते देख,
दिखा इस बार मुझे धूमिल होता,
मेरे गाँव का खुशमिज़ाज परिवेश।


नाम :- विनायक पांडे;
कक्षा :- TYBA;
महाविद्यालय :- भारतीय विद्या भवन, अंधेरी (पश्चिम), मुंबई,(Bhavans college, Mumbai);
विश्वविद्यालय :- मुंबई विश्वविद्यालय;
Contact no :- 9892267623;
Mail id :- Vinayakpandey462@gmail.com
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10 Comments
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Bohot bohot Acha Ase hi likhte raho vinayak writer
जी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(२४-०७-२०२१) को
'खुशनुमा ख़्वाहिश हूँ मैं !!'(चर्चा अंक-४१३५)
पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
आमंत्रण हेतु आपका धन्यवाद, किन्तु एक प्रश्न है "खुशनुमा ख्वाहिश हूँ मैं !!" मे जुड़ने का link मुझे प्राप्त नहीं हुआ है, समय की जानकारी भी नहीं दी गई है। जानकारी विस्तार मे मिल जाती तो कृपा होती । धन्यवाद 🙏🏼
धन्यवाद 🙏🏼, प्रियवर, आपके शब्द मुझे बल देते हैं और आगे बढ़ाने के लिए 🙏🏼
Manisha Goswami said…
This comment has been removed by the author.
Manisha Goswami said…
बिल्कुल सही कहा आपने आज भी यहाँ सोच आज भी वही है यहाँ की! अपनी बेटी होती है दूसरों के लिए गालियाँ! यहाँ बात बात में माँ बहन को गाली दी जाती है यहाँ तक मजाक भी माँ बहन पर ही किया जाता है! रूढ़िवादी विचारधारा आज भी अपने पैर पसारे हुई है! वैश्या पर आधारित हमारा नया अलेख एक बार जरूर देखें🙏
Nitish Tiwary said…
बहुत सुंदर कविता।
सादर नमस्कार 🙏
आप 'खुशनुमा ख़्वाहिश हूँ मैं !!'(चर्चा अंक-४१३५)क्लिक करके आइए आपका दिल से सस्वागत है आपका ।
और ब्लॉगर से भी मिलिए आपको अच्छा लगेगा।
जिससे ज़्यादा से ज़्याद लोग आपको पढ़ पाएंगे।
आपके ब्लॉग पर जो भी पाठक आये आप उसके नाम पर क्लिक करके उसके ब्लॉग पर जाए।
प्रतिक्रिया से मनोबल बढ़ेगा।
सादर नमस्कार 🙏
बहुत सुंदर रचना