बिषय,,, तुलसी जयंती हेतु
गाँव पर कविता
शोषण अलाव आज भी जलते हैं गांव में ।
मजदूर मोम जैसे पिघलते हैं गांव में।।
बूढों को आज वक्त पर मिलती नहीं दवा।
बच्चों के पेट भूख से जलते हैं
गाँव में।।
कानून यूं हवेली के चलते हैं गाँवपर।
कुछ लोग नंगे पैर निकलते हैं गाँव में।।
पानी भी कुछ कुओं से है भरने
पै बंदिशें।
कुछ ऐसे भेदभाव भी चलते हैं
गाँव में।।
धोते हैं आंसुओं से सरल लोग चाक दिल।
मौसम इसी मिजाज से ढलते हैं
गाँव में।।
बृंदावन राय सरल सागर एमपी