विवाह-बंधन
रमाकांत एवं श्यामलाल बचपन के अच्छे मित्र थे एक ही समाज के होने से समाज कार्य में व्यस्त थे। शादी विवाह में हो क्या कोई सामूहिक विवाह में उनकी मुलाकात होती थी रमाकांत जी नागपुर विश्वविद्यालय के कुलसचिव पद पर कार्यरत थे और श्यामलाल जी रेलवे में मुख्य टिकट निरीक्षक पद कार्यरत थे। दो दोनों की अच्छी बनती थी फिर क्या देखना!
एक बार बातों बातों में रमाकांत ने पूछ लिया", अरे शामराव आपके बेटे क्या कर रहे हैं? श्याम राव ने कहा", बडे बेटे की शादी हो गई है, और दूसरा बेटा केंद्रीय पुस्तकालध्यक्ष पद पर मुंबई में कार्यरत है तभी से रमाकांतजी ने सोच लिया मैं अपनी पुत्री की शादी श्याम राव के बेटे से ही करूंगा ।और अपना संमधी बनाऊंगा। इसी वजह से अपनी इकलौती पुत्री की को पुस्तकालय विज्ञान की डिग्री मे प्रवेश दिया उनकी बेटी पढ़ने में बड़ी होशियार थी और संस्कारी थी।
जब शामरावजी का बेटा, छुट्टी पर अक्टूबर महीने में नागपुर आया। अपने दूर के रिश्तेदार से
शामरावजी से बात करके लड़की देखने का कार्यक्रम संपन्न हुआ। पहली नजर में सुरेन अर्चना के आंखों में समा गया! चार-पांच दिन के बाद श्याम राव जी ने रमाकांत कहा ",आपकी बेटी मेरी बहू बनेगी फिर क्या था खुशी का माहौल में सगाई संपन्न हुई उसके बाद सुरेंन मुंबई चला गया जनवरी माह में 27 तारीख शादी तह हुयी। 93 में जनवरी में पहले सप्ताह में सुरेन का तबादला नागपुर के पास वायु सेनास्थल आमला में हुआ, फिर क्या बात है दोनों परिवार के लोग खुशी के फुला न समा पाए ।कहा भी गया है की," सोने पर सुहागा " इसी को बोलते हैं। जब शादी संपन्न हुई तब अर्चना के परिवार के लोग विदाई के समय रो रहे थे यह देख कर सुरेन की भी आंखों से पानी आया। तब से सुरेन अर्चना के प्यार के आंखों में आज तक समा हुआ है।इसका ही बोलते हैं *आंखें चार होना* ।
सुरेंद्र हरड़े (लघुकथाकार)
सत्यकथेपर आधारित,